तुकड्यादास

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तुकडोजी महाराज का जीवन एक प्रेरणादायक और अद्वितीय उदाहरण है, जो सामाजिक सुधार, अध्यात्म, और राष्ट्रसेवा को समर्पित था। उनका जन्म 30 अप्रैल 1909 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के यावली गांव में हुआ था। उनका मूल नाम माणिक बंडोजी इंगले था, लेकिन बाद में वे तुकडोजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए। बचपन से ही उनका झुकाव आध्यात्मिकता और साधना की ओर था।

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राष्ट्रसंत श्री तुकडोजी महाराज एक समाज सुधारक!

तुकडोजी महाराज ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए काम किया। उन्होंने गांवों में स्वच्छता, शिक्षा और स्वास्थ्य के महत्व को समझाते हुए स्वयंसेवकों की एक टीम बनाई। इस टीम के माध्यम से उन्होंने गांवों में स्वच्छता अभियान चलाया और ग्रामीणों को स्वयं अपने गांवों की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रेरित किया।

सामुदायिक प्रार्थना

है प्रार्थना गुरुदेव से ,यह स्वर्ग सम संसार हो। अति उच्चतम जीवन बने, परमार्थमय व्यवहार हो।।

ना हम रहे अपने लिए , हम को सभी से गर्ज है। गुरुदेव यह आशीष दो ,जो सोचने का फर्ज है।। ।।1।।

हम हो पुजारी तत्व के, गुरुदेव के आदेश के। सच प्रेम के नित नेम के, सत धर्म के सत्कर्म के।।

हो चीड़ झूठी राह की , अन्याय की अभिमान की। सेवा करण को दास की ,परवाह नहीं हो जान की।।।।2।।

छोटे ना हो हम बुद्धि से, हो विश्वमय से ईशमय। हो राममय अरू कृष्णमय ,जगदेवमय जगदीशमय।।

हर इंद्रियों पर ताव कर, हम वीर हो अति धीर हो। उज्जवल रहे सर से सदा ,निज धर्म रथ खंभीर हो।।।।3।।

यह डर सभी जाता रहे ,मन बुद्धि का इस देह का। निर्भय रहे हम कर्म में, पर्दा खुला स्नेह का।।

गाते रहे प्रभु नाम पर, प्रभुतत्व पाने के लिए। हो ब्रह्मा विद्या का उदय ,यह जी तराने के लिए।।।।4।।

अति शुद्ध हो आचार से, तन मन हमारा सर्वदा। अध्यात्म की शक्ति हमें, पल भी नहीं करदे जुदा।।

इस अमर आत्मा का हमें, हर श्वास भर में गम रहे। गर मौत भी आ जाएगी, सुख दुख हम में सम रहे।।।।5।।

गुरुदेव तेरी अमर ज्योति, का हमें निज ज्ञान हो सत ज्ञान ही तू है सदा ,यह विश्व भर में ध्यान हो।।

तुझ में नहीं है पंथ भी, ना जात भी ना देश भी। तू है निरामय एक रस है, व्याप्त भी अरू शेष भी।। ।।6।।

गुणधर्म दुनिया में बढ़े, हर जीव से कर्तव्य हो। गंभीर हो सबके हृदय ,सच ज्ञान का वक्तव्य हो।।

यह दूर हो सब भावना ,हम नीच है अस्प्रश्य है। हर जीव का हो शुद्ध मन, जब कर्म उनके स्प्रृश्य है।।।।7।।

हम भिन्न हो इस देह से, पर तत्व से सब एक है। हो ज्ञान सब में एक ही, जिससे मनुज निःशक हो।।

तुकड़या कहे ऐसा अमर पद, प्राप्त हो संसार में। छोड़े नहीं घर बार पर ,हो मस्त गुरु चरणार में।।