सुधबुध गयी मोरी श्याम से ।

(तर्ज : मेहंदी लगी मोरे हाथ रे...)
सुधबुध गयी मोरी श्याम से ।
खुल गये ताले   अंतरंग  के ।।
लग गयी धून  प्रभू-नामसे ! ।।टेक।।
वृन्दावन की कुंज-गली है ।
मधुबन की शृंगार वली है ।।
प्रेम लगा निज-धाम   से ! ।।1।।
जमुना की गहरी है धारा ।
गौओंका  ग्वाला है प्यारा ।।
दर्शन   पाये    अराम  से ! ।।2।।
सूझे नहीं संसार  कहाँका ?
तार चढा मोरे दिलमें गमका ।।
तुकड्या यौं लगा कामसे ! ।।3।।