सुनी, ओ सुनी जी ! मैंने बाँसुरियाँ ।
(तर्ज : जिया ले गयो जी मोरा साँवरिया... . )
सुनी, ओ सुनी जी ! मैंने बाँसुरियाँ ।।
तबसे ही तो मन मस्त भया ! ।।टेक।।
जाग गया, जाग गया ।
सब विषयनसे भाग गया ।
रंग गया मोरा चोला नया ।
अतर में तार है, बजता सितार है ।।
अँखियों में छाँय गया, साँवरिया ।।1।।
नीर बहे, नीर बहे ।
मन उन्मन भये, प्रेम दिया ।
सब रस-अमृत- पान किया ।
उसकी हैआ बाँसरी, मेरी है खंजडी।।
मिलजुल कर बजे झाँजरिया ।।2।।
याद रहे, याद रहे ।
हम नहीं जुदे, सब भेद गया ।
दुही का परदा निकाल दिया ।
हम में भी ओ है, उस में भी हमहै ।।
तुकड्याने अनुभव सार किया ! ।।3।।