तेरा कदम ना आडा जावे ।
(तर्ज : तुम छलियाँ बनके आना...)
तेरा कदम न आडा जावे ।
गर तू इन्सान कहावे ।
चल चढाले रंग, धर दिल संतसंग ।।टेक।।
कोई शराब - गांजा पीते ।
कोई चलते जेब कटाते ।
यह भी तो नर कहलावे ।
पर पशु में भेद न पावे ।।
चल चढाले रंग; धर दिल संतसग 0।।1।।
कोई दुध में पानी डाले ।
कोई गेहूँ में कंकड घोले ।
और धर्मवान् कहलावे ।
फिर ऐसी चाल चल जावे ।।
चल चढाले रंग; धर दिल सतसंग 0।।2।।
मन्दर में जूता चोरे ।
भगवान से नजर उतारे ।
खुब टाल बजाकर गावे ।
लंबा चंदन सिर लावे ।।
चल चढाले रंग; धर दिल सतसग 0।।3।।
ये सब जो कुछ चलता है ।
बह मानव ही करता है ।
कहे तुकड्या क्या समझावे ।
वह कभू कीर्ती नहिं पावे ।।
चल चढाले रंग; धर दिल संतसंग 0।।4।।