तू सुन्द है , या के तेरे गुण !

(तर्ज : ये हरियाली और ये रासता...)
तू सुन्दर है, या के तेरे गुण !
इसमें  तूने  क्या  सोचा  है ?
बता    जरा  तो  तेरा  मन ।।टेक।।
कोइ सजाते बदन को सारे।
तेल लगाकर मल-मल डारे।।
कपडे पहिने भर-जरतारे।
दिल न मले, यौं ही   चले ।।
क्या ये बता कैसी चलन ? ।।1।।
कोइ बेपारी चावल बेचे।
कंकड डाले पैसे खैचे।।
धर्मात्मा कहलाते पीछे।
क्या ये सही बात रही?
पायेगा क्या उसे भगवान ! ।।2।।
सब गरिबोंका लूटे पैसा।
कदर नहीं रहता है ऐसा।।
मानवता तो  बोले वैसा ।
तुकड्या कहे, सुनते  रहे।।
तुझसे अच्छे पिछडे जन ! ।।3।।