तुम्ही हो व्यापक सभी समाये ।
(तर्ज : तुचि कर्ता आणि करविता... )
तुम्ही हो व्यापक सभी समाये ।
शरण तुम्हें हम आये ! ।। होss ।।टेक।।
कौन जगा है जमीं पे खाली ?
जहाँ पे तुमने छटा न डाली ? ?
जब ऐसा है तब बनमाली -
क्यों नहिं दर्शन हमें दिखाये ?।। शरण 0 ।।1।
तुम खंबो से प्रगट भये हो !
नरसिंह रुप अवतार लिये हो।
गजेंद्र की भी अवाज सुनके-
गरुड सँवारे तुम ही धाये ! ।। शरण0 ।।2।।
द्रुपद-सुता की लाज बचाई ,
लाखों वस्त्र पुराये शाही ।।
झूठे बेर चबे भिल्लन के -
सबबिधि यहि महिमा पढ पाये! ।। शरण 0।।3।।
हम मतिमन्द तुम्हारे दरपे,
बैठे हैं, निश्चय कर सरपे।।
तुकड्यादास दया करदे प्रभु -
गुण-अवगुण मेरे जाय भूलाये ! ।। शरण 0 ।।4।।