जग तोले, रगरग बोले, तू दीनोंका रखवार रे।
(तर्ज; तन डोले, पैशा पन बोले...)
जग तोले, रगरग बोले, तू दीनोंका रखवार रे।
मेरी कौन सुनेगा याद भला? ।। टेक ।।
कहीं देखी तेरी राह अनोखी, सबको द्रौपदी बोली ।
कहीं तुने गोवर्धन भूमी, हाथ लगाकर तोली ।
मन भूले नहीं पट खोले,
हम अड गये तेरे दुवार रे। मेरी कौन0 ।। १ ।।
कितनि गोपियाँ बोल गयी है, मोहन-प्यार से फूली।
ग्वाल के मुखसे योंही निकले, रास हरीने खेली।
सुन भोले ! दिल यही रोले,
तुकड्याकी सुनिये पुकार रे ! मेरी कौन0 ।। २ ।।