अकेले क्यों मारे फिरते ?

            (तर्ज: गेला हरी कुण्या गांव... ? )
अकेले क्यों मारे फिरते ?-अपने-अपने में रहते।।
मिलाकर खेति नहीं करते !
क्यों हो डरते, हिंमत छोडे रहते ! ।।टेक।।
किसानी सब मिलकर होती, सबकी ताकत लग जाती।
फजिती दिखने नहीं आती, निकलते खेतीमें मोती ।।
आज सरकार मदद करती, उसको तुम वापस करते।
क्यों हो डरते? हिंमत छोडे रहते ! 0।।1।।
अभी तो बैल नहीं अच्छा, साथी बिमार है बच्चा ।
जपके माल बिने कच्चा, रखनेवाला नहीं सच्चा।।
ऐसी दुविधा में पड़ते, जरा भी बात नहीं सुनते।
क्यों हो डरते ? हिंमत छोडे रहते ! 0 ।।2।।
तुमको शक आता कैसे ? रँखलो हिसाबसे पैसे।
कष्ट में रहो एक-जैसे, चूगली ना खावो किनसे।।
उपजको सबमें बाँटना है, सभी तो मित्र बने रहते ।
क्यों हो डरते ? हिंमत छोडे  रहते ! 0।।3।।
हमारी समझ जरा मानो, देशकी हालत पहिचानो।
किसानों सहकारी हि बनो, अपना दिल इसमें छानो।।
तुकड्यादास कहे मिलके, हम नव - निर्माणहि  करते।
क्यों हो डरते? हिंपगत छोडे रहते ! 0।।4।।