अब तो उनकी खेती हैं ।

              (तर्ज : गेला हरि कुण्या गांवा.... )
अब तो उनकी खेती हैं, बढायी जीवन-शक्ती है ।
जिसने हाथों ज्योती है ।।
सबकी हारी, किसान  की  बलिहारी ! ।।टेक।।
जिसने खेत नहीं देखा, उसके नाम नहीं लेखा।
जिसने बोना नहिं सीखा,खेती में नामही क्यों उसका ।
करो कुछ धंधा अखत्यारी,गुजर तब होगी मुखत्यारी।
सबकी हारी, किसान की बलिहारी ! 0 ।।1।।
तुमतो अकल सिखाओगे, अपना भत्ता पावोगे ।
नहिं मालिक कहलाओगे,अगर हल को न चलाओगे।।
चलेगी अब न साहूकारी, खेती होगी सहकारी ।
सबकी हारी, किसान की बलिहारी ! 0 ।।2।।
जो अपना सेर बनायेंगे, वही रूजगार जिलायेंगे।
अकेले अब दुख पायेंगे, न अपना जिवन सजायेंगे।।
कहे तुकड्या, पाये समझदारी, रही नहीं तेरी और मेरी।
सबकी   हारी, किसानकी   बलिहारी !  ।।3।।