क्यो किसे बोलते झूठ हो ?
(तर्ज: मजसबवे बोल रे माधवा.. )
क्यों किसे बोलते झूठ हो ?
समझ नहीं आयी है तुममें ।।टेक।।
गांधी कहे मत जाल बिछा ले । दुनिया फिर तुमको भी फँसाले ।
देखोगे क्या जबके लूट हो ? ।।१।।
अपने सम सबको ही समझना । यहि तो है मानव का गहना ।
क्यों चाहते आपसभमें फूट हो? ।।२।।
हम मानव मानवतावादी । यहि बनने पायी आजादी ।
कुछ समझो, मत हो बेछूट हो ।।३।।
सत्य-अहिंसा अपना ब्रत है । कहे तुकड्या सबको ही श्रुत है ।
फिर आडा क्यों हाथी -ऊँट हो ? ।।४।।