जो रुजगार चलाओगे, जग जाहिर कर जावोगे ।

            (तर्ज : गेला हरी कुण्या गांवा...)
जो रुजगार चलाओगे, जग -जाहिर कर जावोगे।
वही तो नाम भि पावोगे ।।
नहीं सो बातें; बातें क्यों बतलाते ? ।।टेक।।
तुमने किसान कहलाना, कभी खेती में नही जाना ।
एकने दर्जी नाम कहना, न आवे कपडा भी सीना ।।
इससे क्या समझावोगे, कैसी जात बना जाते ?
नहीं सो बातें, बातें क्यों बतलाते ? 0 ।।1।।
जाती कहता बम्मन का, धंधा बाटा -कंपनिका ।
मुखसे वैश्य बडे कहते, मजूरी कर दिनको बीते।।
नाम है राजपूत भाई, फौजी शिक्षण नहीं पाते।
नहीं सो बातें, बातें क्यो बतलाते ? 0 ।।2।।
किसने कुम्हार हूँ बोला, नाईका रुजगार खोला।
कोई तो कहें मराठे हम, नहीं है लड़ने का भी गम।।
बिगड़ गये वर्णाश्रम सबके, नामपर ही सारे जीते।
नहीं सो बातें, बाते क्यों बतलाते ? 0 ।।3।।
करो रुजगार भले कोई, जात तो एकहि है भाई।
हम हैं भारतीय जाती, हमारी संस्कृति बतलाती।।
तुकड्यादास कहे, सुनिये ! जो सच होगा वही गाते।
नहीं सो बातें, बातें क्यों बतलाते ? 0 ।।4।।