अरे ! बलहीनको मिलना
(तर्ज : प्रभु हा खेल दुनियेचा. . )
अरे ! बलहीनकों मिलना ,कठिन जाता हे ईश्वरभी ।
जिसे ईश्वर न पाता है, उसे पाता नहीं घरभी ।।टेक।।
धमक् जिसमें न है मजबूत , अपने कार्य करनेकी ।
वो अपनेको न फलते है , तो तारे क्या किसे फिरभी ।।१।।
न जिसके देह काबूमें , तो मन मुश्कील है मिलना ।
जिसे नहीं मन मिला जाता ,उसे मरना है डरडरभी ।।२।।
वह तुकड्यादास कहता है , बनो बलवान पहले तुम ।
दृढाओं कार्य की धारा , मिले घर-घरमें गिरिधर भी ।।३।।