अब छोड दिया यह भार सभी
(तर्ज : यह प्रेम सदा भरपूर रहे...)
अब छोड दिया यह भार सभी,गुरुदेव तुम्हारे चरणोमें
अर्पण किया इस देह को अब, गुरुदेव तुम्हारे चरणोमें ।। टेक।।
अब रूठ गयी खंजरी भी मेरी, बस साथ मेरा करते करते ।
मैं मौन भया हूँ सबसे अब, गुरुदेव तुम्हारे चरणोमें ।।१।।
कई घडीयोका मेहमान हूँ अब, यह जान गया दिल मनसे में ।
जब चाहे तब हाजीर हूँ अब, गुरुदेव तुम्हारे चरणोमें ।।२।।
निजधाम का प्रेम सताने लगा, सद्गुरु पद दर्श दिखाय रहा ।
बस आतम तार अब लाग रहा, गुरुदेव तुम्हारे चरणोमें ।।३।।
अब आखिर की यह अर्ज मेरी, मैं कहता हूँ यह सुन लेना ।
तुकड्याने सुनायी जाते जाते, गुरुदेव तुम्हारे चरणोमें ।।४।।