रहो हुशियार अब भाई !
(तर्ज : प्रभू हा खेठ दुनियेचा... )
रहो हुशियार अब भाई ! । समय विपरीत आया है ।
बचाओ लाजको अपनी । पाप घनघोर छाया है ।।टेक।।
कहाँ था धर्म भारतका । न्याय, नीती ऋषियोंकी ।
ला जाता है दिन-दिनमें । दोष-दुर्गुण समाया है ।।१।।
पिताकों ना पिता कहते । न भाई-बंधुसे नाता ।
टहलते धार विषयोंकी । शौक खिलकतमें छाया है ।।२।।
न भक्ति है, न पूजा है । न दिलमें नाम ईश्वरका ।
भटकते पेटको दर-दर । मिले जहाँ मुँह लगाया है ।।३।।
वह तुकड्यादास कहता है । वृद्ध मानी सुजानोंसे ।
न आओ भूलमें इनकी । सुधारों जो गमाया है ।।४।।