इस आसको पूरी कर दे । दरसन से अखियाँ भर दे

(तज; चित्त घरच पुनीत बवेना. . )
इस आसको पूरी कर दे । दरसन से अखियाँ भर दे ।। टेक ।।
तेरा रुप सभी ये व्यापक, ऋषिसमूनियोंने गाया है ।
नजर नहीं आया मुझको वह, दिव्यदृष्टिका बर दे ।। दर0 ।।१।।
जल, थल में नभ भूमण्डल में, सब चैतन्य समाया है ।
 मुझको तो मुझमें नहीं पाया, बिगडा जिवन सुधर दे ।। दर0 ।।२।।
चैन नहीं पाती अब जीको, बिन देखे दुख छाया है ।
तुकड्यादास कहे मिल जा अब, मेरी ओर नजर दे।। दर0 ।।३।।