अब भंगीमुक्ति - संडास बने

            (तर्ज : मेरे टिलमें गुरुने जादु.... )
अब भंगीमुक्ति-संडास बने,भंगी को सताना बंद करो ।
अपने घरके जन आगे बढें,खुद साफसफाई -छंद धरो ।।टेक।।
ऐसा था कहना गांधीका,उसने खुदही यह काम किया।
आदमी आदमी का भंगी हो, यह कहनेकी मति मंद करो ।।१।।
है सुन्दर निकला साधन अब,जहाँ गंध नहीं मखियाँ भी नहीं ।
सोषा संडास बनाने को जो आते उनका साथ करो ।।२।।
गांधी की शताब्दी सुन्दर हो,यदि चाहते तो कुछ काम बने ।
इस देशमें मैला बेकीमत, होता इनकी कुछ खन्त करो ।।३।।
यह घरमें ही संडास बने,अजि ! खाद बने, कीमत भी मिले ।
सबसे यह खाद अमूल्य सहज, परदेश से लाना बंद करो ।।४।।
हट जाय गांवका गंदापन, निर्लज्ज रहन, नितकी अडचन ।
तुकड्या कहे मानव मानव हो, अब यह नाराहि बुलन्द करो ।।५।।