तब गयी सूधबुध मोरी

               (तर्ज: बन चले राम रघुराई.. )
तब गयी सूधबुध मोरी । जब देखा गिरिधारी हो ।।टेक।।
हाथ में ली एक तारकी तारी ।
मीठी बजायी  थी   करतारी ।।
ध्यान लगा जब प्रभु -गाननमें ,
ऊर्ध्व दृष्टि  भयी   सारी  हो ।।जब 0।।१।।
छायी नशा जैसे भंग खाया ।
ऊँचे न ॒होवे आँख  उठाया ।।
प्रेम लगा अमृतसम जीको ,
भया प्रगट   उजियारा   हो ।। जब 0 ।।२।।
कमलवदन, शिर मोरमुकुट है ।
नैन मनोहर, बन्सि  निकट  है ।।
कोटी सूर्य - प्रभा  लखलखसी,
तुकड्यादास   निहारी   हो ।।जब 0 ।।३।।