तीरथ सो मेरे मन भाई

            (तर्ज: मो-सम कौन कुटिल ..)
               तीरथ सो मेरे मन भाई ।
               जहाँ मिट  गयी  दुआई ।।टेक।।
सदा शांत मंदीर ब्रिराजे, ज्ञानघंटा सुखदायी ।
बाजत ताल खुले आतमके,अनुभव-दर्शन पायी ।।१।।
जिसमें रहत पुजारी हरदम, पूरण प्रेम  समाई ।
जले दीप,फलफूल चढे,प्रभु रहत प्रसन्न सदाही ।।२।।
तुकड्यादास गुरुका प्यारा, ऐसो तीर्थ जाई ।
ऊँच-नीच जहाँ रहे  समाना, भेद - अभेदा  नाही ।।३।।