अभागी ! साधूका घर दूर
(तर्ज: जगत में जीवन को व्यवहार...)
अभागी ! साधूका घर दूर ।।टेक।।
सब दिन सुखहि बसे घर उनके ,हर पल चमके नूर ।
कमलपत्र -सम रहत जगतमें, पाप -पुण्य से दूर ।।१।।
काम-क्रोध से लडत निरन्तर, रखकर साक्ष हजूर ।
पर - उपकार दया दीननपर, हरिकीर्तन मामूर ।।२।।
सोहं॑ हंसा जप दिनराती, चेतनवृत्ति सहर ।
तुकड्यादास सन्तनका चेला, रंग गया भरपूर ।।३।।