हम ढूँढते दर - दरपे तुझे

    (तर्ज डा सर स्सिवा कौन मेरा...) 
हम ढूँढते दर-दरपे तुझे, प्यारे  कन्हैया !
मिल जा न लगा देर, पड़ी भौर में नैया ।।टेक।।
भारत को लगी भूख, तेरे दर्शकी भारी !
आती है याद हरघडी, ऐ कृष्ण- मुरारी !
बन्सी की सुना टेर, देर ना करो भैया ! ।। मिल 0।।१।।
ना धर्म रहा टुकभी तेरी जो थी तमन्ना ।
मारत का गया धन,नही है मोति औ पन्ना ।
खाने को नही रोटि,रोते बाल औ मैया ।। मिल 0।।२।।
गोपाल भये काल, नहीं कदर उन्हीको ।
गर सोचते है हम, न पड़े चैनभी जी को ।
अब आओ मेरे श्यामसुंदर ! बन्सि-बजेया ! ।।मिल0 ।।३।।
कैसी पढ़ेंगे गीता? अब कौन सुनावे ?
अर्जुन नही, न कृष्ण है, तो कौन पढावे ।
क्यों देर लगाता है ऐ माखन के चुरैया ! ।। मिल 0।।४।।
बस छोड दे बैकुंठ दौर - दौरके आजा ।
कर दे सुखी तेरे जो उन्हे ग्यान सिखा जा ।
तुकड्याकी अरज कर दे पुरी,टेक रखेया ! ।।मिल 0।।५।।