डर - डरके मरेंगे हम

           (तर्ज: दुनिया में गरीबोंको. ...)
डर - डरके मरेंगे हम, आवाज   नहीं   दोगे ? 
जीतेहि  रहे  फिर क्यों ? आवाज नहीं दोगे ?।।टेक।।
इनसान नहीं सुनता, पर और भी तो है ना ?
जिसने जगत बनाया, उसकोही सुना देना ।
वह भी खबर न करते, फिर किसको सुना देगो ?।। डर0।।१।।
आओ सभी मिलेंगे, गायेंगे हाल अपना ।
चिंधी न मिले तनपे, खाने मिले न दाना ।
कर कष्ट मरे फिर भी, क्योंकर न दया लोगे ? ।। डर0।।२।।
मोहन ! तुम्हारि दुनियाने खयाल बिगाडा है ।
आपस में खून चुसते, यह न्याय निवाडा  है ।
कुछभी करोगे तुम फिर, ईश्वरहिं कहाओगे ?।। डर 0।।३।।
लाचार   बने    जाते, मरनेको   सभी   जीमें । 
बुध्दीहि नहीं चलती, ना ध्यान भी किसी में ।
तुकड्या कहे यह कैसा दिन? बखत गमा दोगे?।। डर0।।४।।