आखिर में हम तुम्हारे
(तर्ज: राजी है हम उसीमें..... )
आखिर में हम तुम्हारे, वशही तो है ना भगवन् ।
दुनिया के आशको का, जशही तू है ना भगवन् ? ।।टेक।।
जैसा हमे नचाये, वैसे रहेगे जग में ।
हम पागलो के दिलका,कसही तू है ना भगवन् ? ।।१।।
दीपकको छोड करके , भटके पतंग जेसे ।
वैसी हमारे जी की, नसही तू है ना भगवन् ।।२।।
मछली की प्यास पानी, जिंदगानि भी उसीमें ।
वैसे हमारि नसका, रसही तू है ना भगवन ।।३।।
फिर क्यों सता रहा है ? मिलजा तू इस गरिबको ।
तुकड्या कहे न मिलना,हँसही तो है ना भगवन् ?।।४।।