अयोध्या आज सनाथ भयी

     (तर्ज: सुनेरी मेने निर्बलके बल राम...)
       अयोध्या आज सनाथ भयी ।।टेक ।।
चौदह बरस व्यतित कर बनमें, रामने दरस दई ।
रावण दुष्ट दुवारण   मारे, धर्मकि   लाज   रही ।।१।।
परवश थे सब दीन-हीन जन, बंधन  काट दई ।
कुद  पड़े   हनुमान  लंकपर, सीता   मुक्त   हुई ।।२।।
जिधर-उधर आनंद समायो,सुमति प्रदान किई ।
सियाराम दोउ बैठे सिंहासन,अब कोउ दुःख नहीं।।३।।
वह दिन कब आवे भारतमें ? आज गुलामिं रही ।
तुकड्यादास जोड कर बोले, वहिं जिय आश रही ।। ४।।