तेरि मीठी -मीठी बातोंपर,साधक कि निगा ना फँसे, अरे तू सुन !
(तर्ज- तेरि प्यारी -प्यारी सूरतियाँ.. . . )
तेरि मीठी -मीठी बातोंपर,साधक कि निगा ना फँसे, अरे तू सुन !
तेरे सुन्दर-सुन्दर कपडोंपर,साधककि निगा ना फँसे,अरे तू सुन ! ! ॥टेक ॥
निर्भय, निडर साधक हो, उसको निश्चयका हक हो।
चरित्र उसका हो उज्वलता, उससे अपने प्राण कसे ! ।।१।।
चाहे अकेले, या जनमें, विषय न छू पावे मनमें।
त्याग का बाना,मस्त दिवाना , अपने प्रभुसे सदा हँसे! ।। २ ।।
परस्त्रीपर जो निगा करे, वह जम घरमें पाप भरे।
जो हो साधक, उसे है बाधक, भ्रष्ट रहे व्रत-पालनसे! ।।३ ॥
इसका कारण कहता हूँ मैं, सचकी निगा रहे सबमें।
पर-उपकारी ही दृष्टि हमारी, तुकड्यादास कहे सबसे ।। ४ ॥