सेवक ! जीवन काव्य बनाले
(तर्ज: रघुवर आज रहो मेरे प्यारे... )
सेवक ! जीवन काव्य बनाले ।
फिर उसको अजमाले ।।टेक।।
जितना कपडा लगे बदनको,अपने हाथ बुनाले ।
जितना खाना लगे वही ले, स्वयं उसे उपजाले ।।१।।
जितनी रहने जगह लगेगी, बस उतनी बनवाले ।।
सुन्दर रहन-सहन उसमें कर,और न पास बसा ले ।।२।।
पर उपकार दया दिनोंपर, उनको मित्र बना ले ।
जैसा तू खुदको समझेगा, सबको वही समझाले ।।३।।
नीति -न्याय,चारित्र्य,शुरता, तनमनसे नित पाले ।
तुकड्यादास कहे ईश्वरपर, पुरा भरोसा डाले ।।४।।