सरल स्वभाव भी नहीं सिखा तू
(तर्ज - छंद)
सरल स्वभाव भी नहीं सिखा तू, किसने तुझको मंत्र दिया ।
कौन गुरु है तेरा भैय्या! किसने तुझको शिष्य किया ? ।।टेक।।
पहिले तो पूँछा जाता है - गुरु बचन नहीं टालूंगा ।
चरित्र अपना ठीक रखूंगा, झुठ बचन नहीं बोलूंगा ।।
सादा जीवन, विचार ऊँचे, ब्रह्मचर्यको पालूगा ।
मदिरा-मांस और मिर्च-मसाला,इनसे जबाँ सम्हालूगा ।
इतना कहना काफी होगा, वही शिष्य जो अमल किया
कोन गुरु है तेरा भैय्या ! किसने तुझको शिष्य किया ? ।।१।।
जबतक गुरु उपदेश न होता,तबतक तो सब माफ बने
मंत्र दिया तब मार्ग बताया, ग्यान ध्यानकों योग्य चुने।
कबूल करके नहीं किया तब, धोखा गुरुको दिया सही
क्या होता है पैर पढड़ेसे ?- भले दक्षिणा दिया नहीं ।।
पहिले दिल सब साफ चाहिये,गुरुसे कभू ना कपट किया ।
कौन गुरु है तेरा भैय्या ! किसने तुझको शिष्य किया? ।।२।।
उत्तम दिनचर्या हो तेरी, चिंतन मनमें बना रहे ।
हीन दीन की सेवा करने, हरदम दिल तैय्यार रहे ।।
घरमें कोई आया अतिथि, भूखा लौट न जायेगा ।
जो बनता वह देना - लेना, प्रेमसे प्रेम बढायेगा ।।
संकट में हो सहायता तब, हमने समझो ठीक किया ।
कौन गुरु है तेरा भैय्या ! किसने तुझको शिष्य किया ? ।।३।।
अपने गुरुकी पूजा करना, औरोंकी निन्दा करना ।
वह तो दंडके योग्य बनेगा,उसका जी नहीं उध्दरना ।
गुरु तो होता ग्यानरूप ही, अपना-परका कहाँ रहाँ ।
जहाँ मिले सत्शब्द श्रवणको, सर होता है नम्र वहाँ ।।
तुकड्यादास कहे,छलबल कर,गुरु को क्यों बदनाम किया ।
कौन गुरु है तेरा भैय्या ! किसने तुझको शिष्य किया ? ।।४।।