समझ न पाया मैआ गुरु - गीता
(तर्ज : अवधित आली बेठा बाई...)
समझ न पाया मैं गुरु -गीता,मैं तो भावुक हूँ दर्शनका ।
गुरु चरणोंमे फूल बहाता, यही है सार्थक मेरे मनका ।। टेक।।
गुरु की आज्ञा सिरपर धरना, प्राण जाय पीछे नहीं हटना ।
इतनाही सीखा हैं मैंने, मुझको ज्ञान नहीं औरनका ।। १।।
मेरे सुख-दुख सत्गुरू-पूजा,और मुझे आनन्द न दूजा ।
सारा जीवन करके निछावर, लाभ उठाऊँ गुरु सुमरनका ।।२।।
गुरुका वर्म गुरु ही जाने, हमतो उनके प्रेम दिवाने ।
गुरु उपदेशही बेद हमारा, भेद मिटे सारे जीवनका ।।३।।
जनता बोले उनसे बाता, हमको बातोंसे नहिं नाता ।
तुकड्यादास कहे गुरु सूरत, देखेही सुख है नैननका ।।४।।