सन्तन का वख्त बडा कीमति है

(तर्ज : कौतुक किती ऐकवावे देवाचे.. )
सन्तन का वख्त बडा कीमति है । 
जितना भी हो सिखो, सू-मति है ।।टेक।।
पूजा  के   वास्ते   मंदीर     बना ।
अवगुण के नाशका जंजीर बना ।
कीर्तन के स्थान  वही  देत   गती  है ।।१।।
साधू का बोध हो तो   काफी  है ।
सुनो, उनसे ही उद्धरते पापी है ।
करके दिखाओ,न भूला जाय रती है ।।२।।
एक निर्भय सन्त-संग जो भी मिले ।
सारे जल   जाये   पाप, दोष   गले ।
निर्मल होता है जीव, कहत श्रृती है ।।३।।
मैं इसलिये ही कहता हूँ बात बडी ।
अपनेही कहे उनको नाचो न घडी ।
तुकड्याका सार, ज्योग-ज्युगती है ।।४।।