कहूँ किसको ?

       (तर्ज: बावरी मैं बन गयी... )
       कहूँ किसको ? कहूँ किसको ? ।
मैं  भला जगत में,कहूँ    किसको ? ।।टेक।।
सुन्दर कपडे रंगरंगीले,जेवर बदन ढला ।
पर गरिबोंको चूस-चूसकर, ऊँचे महल चला ।।
सजन कोई कैसे  कहत ख़ुला?।  जगत  में ।।३।।
सत्ता धनमत्ता के पीछे, रहता हरदम फुला ।
कभी न किसको सुख दिलवाया,अहंकार में जला ।।
उमर में क्योंकर नाम   मिला ? । जगत   में ।।२।।
मंदिर में पूजा कर-करके,भक्ति बतावे भला ।
पर किसके प्रति प्रेम न दिलमें,कहते जन बगुला ।।
उमर गयी विषयों में  ही   मिला । जगत   में ।।३।।
कहीं किसिकी कदर न आयी,न तुले और तुला ।
तुकड्यादास कहे बाहर से,मिले न जात मिला ।।
चला    वह   यूही  सहते    चला । जगत   में ।।४।।