आज हमारे चिन्तमें ही

           (तर्ज: वृन्दावन का कृष्ण कन्हैया... )
आज हमारे चिन्तनमें ही, सबका चिन्तन दिखता है ।
मानो जीवन जंगल सारा, चिन्तनही तो सिखता है ।।टेक।।
किसका चिंतन भूख-पेटका,किसका शोषण करने का।
किसका सत्ता मत्ता का और किसका डरडर रहने का 
किसमें चिंतन जीवन का और अपनी खास तरक्कीका
किसका प्यारा चिंतन तो, चलता अपनी इईश्वर-भक्तीका ।।
किसका प्यारा चिंतन तो , दुनियाको भी सुख हो सकता है ।
             मानो जीवन जंगल सारा... ।।१।।
किसका चिंतन - प्रगट बातसे, घडीघडीमें ध्यान करें ।
किसका तो विंषयोंमें जाकर, स्वाँसस्वाँस हैरान करे ।।
किसका चिंतन दुटप्पी है, अन्दर   बाहर  फर्क  करे ।
अपनीही करनीसे सारा, सुन्दर जीवन   नर्क  करे ।।
किसका चिंतन गहराई की, तलाशमें भी खोज करे ।
किसका चिंतन औरोंको भी,रहन-सहन का बोझ करें ।
तुकड्यादास कहे चिंतन से, जो चाहे बन सकता है।
             मानो जीवन जंगल सारा... ।।२।।