सुनी तान, खोया भान

            (तर्ज: कभी आर, कभी पार...)
सुनी तान, खोया भान, दिलमें लागी लगन ।
किसने ऐसी बजाई  बन्सी, लूटा  यह   मन ।।टेक।।
कबसे मैं बैठा था तेरी याद में जगा  हुआ ।
दुनियादारी भूल के मैं ध्यान में रंगा हुआ ।
बादल छाये, बिजली चमके ।
पानी बरसे  झिमके  झिमके ।
फूला  ऊठा  वतन ।।१।।
धीरे धीरे पैर डाले, मिट्टी सारी लाल थी ।
बन्सरी की माधुरी में, प्रेमकी   कमाल  थी ।
मिठी-मिठी  बोली   बोले ।
दिल के परदे धीरे  खोले ।
कोई देखो  सजन ।।२।।
कोयलों की धून फीकी,कुंजकी  लताओं  में ।
फूल की सुगंधी फीकी,मनमोहन की छाँव में ।
तुकड्यादास हटाई बाधा ।
बनके राधा की  अनुराधा ।
दिलसे  छूए चरण ।।३।।