लतापत्रसे अति सुंदर है

  (तर्ज: दिल जाग गया, रंग लाग गया...)
लतापत्रसे अति सुंदर है, गर्द वृक्ष की छाया ।
       यह आश्रम कौन बनाया ।।टेक।।
अथाह   जल  गंभीर   रुपसे, बहे  नर्मदा - माई ।
मनमोहक हनुमान-घाट है, शोभा बर्णि  न  जाई ।।१।।
अती निकट शिवलिंग है अंदर,मंदर बहुत पुराना ।
जरा बाजुमें हनुमान ने   दिया  अटल   है   ठाना ।।२।।
जहाँ-तहाँ ऋषियोंकी महिमा , अन्दर- बाहर पाये ।
मधुर-मधुर बन्दर और पक्षी, मीठा गान सुनाये ।।३।।
मंडला के पट निकट शहर से, तारे वाँकी धारा ।
सब जनताको जाहिर है यह, वैष्णव स्थान पियारा ।।४।।
पासहिमें हनुमान गुफाँ है, अन्दर   बाहर   बाँधी ।
पता नहिं लगता अंदरमें, धूप  चले   या   आँधी ।।५।।
स्मशान-स्थल शांतता नजिक है,चित्त स्थीर करनेको 
रामनामका जप चलता है, अखंड जीव तरनेको ।।६।।
योगीराज सीतारामदास की, है यह महिमा सारी ।
अपने तपसे जैसे  सबमें, भरा   दिया  बलिहारी ।।७।।
लगता है यहाँ ही रह जाये,कुछ रोज करे विश्रामा ।
तुकड्यादास प्रेम -रस पाये, लेकर प्रभुके नामा ।।८।।