किन संग, कटु ना बोलिये

           (तर्ज : आज मी ब्रह्म पाहिले...)
किन संग,कटु ना बोलिये; किन संग,कट ना बोलिये ।
मानव - जन्म दीन्ह रघुबरने -
सोच -समझ करके, दुनियाँके,नजरों झुलिये! ।।टेक।।
जितना बनता कर उपकारा ।
कम खर्चे में   करो   गुजारा ।।
व्यसनाधिन इद्रिय यह सारा ।
सत्‌ से तोलिये ! ।।किन सँग0।।१।।
दुनिया की हो अट-सट बातें ।
सह लेना मन क्रोध न आते ।।
फिर भी प्रेम करो अपनाके ।
भूलके गालिये ! किन  सँग0 ।।२।।
सरल स्वभाव प्रीत नयनन में ।
प्रभू-भक्ती बानी में, मन में ।। 
तुकड्यादास कहे,जीवन में -
सुखसे डोलिये ! ।।किन सँग0।।३।।