जाओ जाओ, ना सताओ

       (तर्ज : मोहे पनघटपे नंदलाल ... )
जाओ जाओ, ना सताओ, ध्यान छूट गयो है ।
मोरी दिलकी लगन-मगन थी,जो टूट गयो है ।।टेक।।
माधव की पूनममें, बैठा था कुंजन में ।
विषय - भाव क्यों मनमें ? ?
साक्षी ने पछान लियो,फूट भयो  है ! ।। जाओ 0।।१।।
कितने बार रोक लियो,मैं न चाहूँ कहीको गयो ।
समझाकर समझ दियो ।।
फिरभी बावलो न माने लूट  गयो  है ! । जाओ0।।२।।
दुर्बल - सा देख मोहे, ग्रासे षडरिपु सब ये ।
अबतो समय भी न रहे ।।
आसको उदास करने   ऊँठ  गयो   है ।।जाओ0।।३।।
सत्‌गुरु की शरण जाऊँ, हाल सब सुनाय आऊँ।
तबही बरदू-हस्त पाऊँ ।।
कहे तुकड्या,बल उनके झूठ भयो है ।।जाओ0।।४।।