तोरि प्रीत लगी फिर नीत कहाँ ?

(तर्ज : तुझी प्रीत उघड करू कैसी,सांग..)
तोरि प्रीत लगी फिर नीत कहाँ ?
तब रीत-भात अरू जात  कहाँ ??
यही तो है मो रि  जीत  यहाँ ! ।।टेक।।
कहाँ कुबजाने जप-तप कीन्हो ।
रघुबरने आकर  मन  चिन्हो ।।
देखा  नहीं  प्रभू   भेद  तहाँ ! ।।१।।
जूठे बेर   खात   भिछन   के ।
क्यों नहिं जाती देखे उसके ?
भगतन के बीच मस्त  रहा ! ।।२।।
कब गजने योगादिक साधे ?
प्रभू धाये तब भागे - भागे ।।
द्रौपदि का नहिं  दुख   सहा ! ।।३।।
केवट ब्रह्म- भोज कब दीन्हे?
वेश्या गणीका क्या गुण चिन्हे??
तुकड्या कहे,यही रंग रहा ! ।।४।।