तेरे दिलकी छोटी जाँत

          (तर्ज : प्यारे अपनी गठडी खोल...)
तेरे दिलकी छोटी जाँत, पचे नहीं थोडीसी भी बात ।।टेक।।
निन्दा सुनता घर-घर बोले,बिन सोचे ही मुंह को खोले 
उससे होता तेरा घात ।। पचे नहीं थोडीसी भी बात 0।।१।।
जबके जरा बडप्पन आया, तूने सिरपर छत्र डुलाया ।
होता सत्कर्मों का खाद ।। पचचे नहीं थोडीसी भी बात 0।।२।।
किसने कर बिश्वास बिठाला, तू तो सदा बके मुंह काला ।
दिखाता बैठे-बैठे हाथ ।। पचे नहीं थोडीसी भी बात 0।।३।।
इस साधूसे उसकी निन्दा, उस साधूसे कहता गन्दा ।
बदले दिनमें सज़न सात ।। पचे नहीं थोडीसी भी बात0 ।।४।।
फिर कहता-हम लायक है,जीवन तेरा नहीं सहायक है
तुकड्या कहे,मिले नहीं साथ ।। पचे नहीं थोडीसी भी बात0।।५।।