तुम सच्चे हकदार देशके

         (तर्ज : हरि भजनाची रुचि जयाला...)
तुम सच्चे हकदार देशके, क्यों डरते शत्रुको ? 
खुशी है, जो करना कर सको ।।टेक।।
भारतीय हम अपने बलसे, किस्मत बनवायेंगे ।
परिश्रम करके घर छायेंगे ।।
खेती - भाती उद्योगी बनकर के सजवायेंगे ।
सभी मिलकरके ले खायेंगे ।।
ग्राम - ग्राम में शिक्षण होगा, धर्म मर्म-भेद का ।
काम फिर नही पड़े खेद का ।।
(तर्ज)      हम भारतवासी एक जाति जब बने ।
फिर मजाल क्या कोइ भूमि हमारी छिने ?
हम जवान होकर, क्योंकर किसकी सुने ?
अपना कमावे, अपना खाते, प्रेमसे रहना सिखो ।
करे जो कपट उसे ना रखो ।।१।।
घर घर में व्यायाम चलेगा, बने सिपाही गडी ।
देश में सेना होगी खडी ।।
अपना देश बचाने हम भी अणु-एँटम भी करे ।
नाहक क्यों किसके हाथों मरे? ।।
भीख नहीं माँगेंगे किससे, दूध, गेहूँ की कहीं ।
हुई जो अबतक सो होगयी ।।
(तर्ज)        हो गये बीस वर्ष के तरुण हम पुरे ।
अग्यान गया अब पिछे जरा नहिं फिरे ।
अभिमान हमारा नष्ट नहीं   हम  करें ।
कई करोड की शक्ति हमारी, न करे किस कर्मको ?
भुले क्यों हम अपने धर्म को ? ।।२।।
नादानी की शक्ति हमारी, आपसभमें लड रही ।
किसीने जादू कर दी सही ।।
जो चाहे ललचावे हमको, फुसलाने  आगये ।
अभीतक स्वागत हमने दिये ।।
भाई भाई बोलके किसने, छुरे गले धर दिये ।
हमारे रत्न खत्म कर दिये ।
(तर्ज)... हम जान गये कोई किसका साथी नहीं ।
अपनेही बल से जिये-मरे हम सही ।
यह याद अमोलिक, गीता की पट गयी ।
तुकड्यादास कहे हम जागे,जो लिखना है लिखो ।
एकता - मानवता  ही  सिखो ।।३।।