झाडु-टोकनी ले ले भाई !

                    (तर्ज: कोरस गीत)
झाडु-टोकनी ले-ले थाई ! टिकास भी तो साथ करो ।
जिनके घरमें गन्दा होगा, हँसी-ख़ुशीसे साफ  करो ! ।।टेक।।
कहीं ऊँच नीची है भूमी, चलते तोल घसरता है ।
बिचार करते चले तो अक्सर,पैर फिसलकर गिरता है ।।
उनके घरकी खोदो मिट्टी, लैन लगाक़र रेत भरो ।
जिनके घरमें गन्दा होगा, हँसी-खुशीसे साफ करो ! ।।१।।
देखो किसका छप्पर निकला, मारग में बाहर आया ।
उसको समझाओ की,भाई ! सम्हल जरा अपनी माया ! ।
समाजका जानेका मारग, मत रोको ,कहीं -माफ करो ।
जिनके घरमें गन्दा होगा, हँसी -खुशीसे साफ करो ! ।।२।।
देखो किसकि टट्टी गन्दी ? हवा बुरी   फैलाती   है ।
क्यों नहीं उसपर काली -मिटी, फिर-फिर डाली जाती है ।।
चुल्हा भी तो साफ नहीं है, जरा समझकर बात करो ।
जिनके घरमें गन्दा होगा, हँसी-खुशीसे साफ करो ! ।।३।।
घरके बच्चे सुबो न ऊठे, आलस घरभर फैलाते ।
क्यों नहिं उनको समझा करके, बडी सुबोंमें उठवाते ।।
आदत जबतक नहीं पड़ेगी, तबतक तो  तैनात  करो ।
जिनके घरमें गन्दा होगा, हँसी-खुशीसे साफ करो ! ।।४।।
पडोसीयोंको बोलो -जिससे, आपस में सुधरा जावे |
चारों तरफ मुहल्ला अच्छा, सब मिलकरही सुधरावे ।।
तुकड्यादास कहे,हिलमिलकर,जूने झगड़े बाद करो।
जिनके घरमें गन्दा होगा, हँसी-खुशीसे साफ करो ! ।।५।।