तरिये लहरी भवसागरकी
(तर्ज : सवैया)
तरिये लहरी भवसागरकी,
हमपे प्रभु ! ऐसी दया करियें ।।
धरिये सिर हाथकों साथहिमें,
जिससे मन गात समय सरिये ।।
भरिये पुनि अंदर ऐसी कृपा,
जिससे जमके दुखसो डरिये ।।
स्मरिये तुकड्या तुम्हरे गुणको,
जिससे अवगुण फिको परिये ।।