अब रुठ गये हमसे हरि क्यों ?

          (तर्ज : सवैया) 
अब रूठ गये हमसे हरि क्यों ?
हमरी न  दया   तुममे   बसती । 
सब जन्म अकारथ जाने लगा,
यह क्यों मतिया भ्रममें फँसती ?
इत काम न धाम   हमें  फुरता,
चली आयी मरन दरपे हँसती ।
तुकड्याकी सुधी अब लो जल्दी,
बस हिमंत जाय   रही   खसतो ।।