अब कैसे ध्यान चढावें ?

           (तर्ज : कैसे करु तेरा ध्यान...)
अब कैसे ध्यान चढावें ? भरी  मनमे   अंधेरी   छाई ।
या कहाँ किसे बुलवावें ? बडी पापकी आँधी आई ।।टेक।।
कल रामकथा सुनते थे, ना दर्द किसीको देना ।
हम समझ रहे थे दिलमें, बैरागभरा वह  गाना ।
क्या हुआ कहा नहिं जाता, मन रोके न जात रुकाई ।। १।।
हैं समझ -उमझको आँखे, परकाश काम नहिं करता ।
दिखता है पाप यही है, पर   कदम   न   पीछे   परता ।
निर्बल हैं ज्ञानके बाहो, कहो कैसे समय सुधराई ? ।।२।।
शैतान रुप धर आया, या भेजा कौन किसीने ?
यह संकट घोर हमारा हम कहते मनके मनमें ।
पर वेग न पीछे हटता, हो दयानिधान ! सहाई ।।३।।
कहो किसका दोष बडा है ? हम करते अर्ज सुनाओ ।
कहे तुकड्या मार्ग बताओ, गुरुदेव ! हमारे आओ ।
यह नैया डूब रही है, मँझधार   गई   चकराई ।।४।।