अपने आतम्‌ के चिंतन में, हरदम जागृत रहना है

(तर्ज: उठा गड्या अरुणोदय झाला.... )

अपने आतम्‌ के चिंतन में, हरदम जागृत रहना है। 
ओहं सोह॑ श्वास से अपनी अंतरदृष्टी निरखना है ।।टेक ।।
चंचल मनको बुध्दि विचारक,शुध्दी सततही करना है।
निश्चल कर वृत्ती की धारा, अंतरमुख से स्थिरना है।। १॥
सहज समाधी चलते हलते, सब कामों में रखना है।
विश्वरुप विश्वात्मक दृष्टी, अनासक्ती से चखना है।।२॥।
सुख -दुःख दोनों जीवधर्म है, उनसे निवृत्त होना है।
सदा आत्म-आनंद की मस्ती, पलपल में अनुभवना है।। ३ ॥
संत मिले सतसंग लाभकर, ग्यान ध्यान में रमना है।
कर्मफलों का त्याग निहित कर,शांतीस्थान में जमना है ।।४ ।।
इस मानव-जीवन में इतनी, मंजिल चढ़कर जाना है। 
तुकड्यादास कहे यह बानी,रोज-रोज ही गाना है॥५।।