सुजनका संग ना पाया रे, जनम गया बीता

तर्ज : दिन बीते... )

सुजनका संग ना पाया रे, जनम गया बीता ।।टेक॥
बचपनका यह खेल हे झूठा।
आयी. जवानी तिरीया लूटा।।
लड़के बच्चोंमें दिल जूटा।
सारा दिनहीं होगया खोटा।। 
साधुसंग, मुख रामनाम, मुझे क्षण ही न भाता ।।१।।
धन धन करके, गये चकराये |
सत्ताका भी. मोह न जाये।।
परनिंदा की  शर्म न  आये।
क्या  ऐसे  जीये,  मरजाये।।
मेरे राम,हायहाय कर जावे,अब तो पल न सुहाता।।२॥
अब किसके संग क्या सुधरेंगे।
बिन  गुरुके को पार करेंगे।।
नहीं तो नाहक हम भी मरेंगे|
कहे तुकड्या फिर क्या सुधरेंगे।। 
सब अंग, भंग हो जाये, कोन संग आता ।।३।।