इन्सान! तेरी शक्ल -सूरत का पता लिया।

तर्ज : तू हिंदू बनेगा न मुसलमान... )

इन्सान! तेरी शक्ल -सूरत का पता लिया।
लगता है तुझे आजका शैतान लग गया  ।।टेक ।।
ना बात की तमीज, नेकी का पता नही।
व्यवहार - गंदगी से तेरी शान जा रही।।
ना खानपान शुध्द, मिलावट जमा हुई।
सब खून-खराबी से तेरी मौत हो रही।
तू क्षीण दिन-पे-दिन चरित्रहीन बन गया। लगता है तुझे 0 ।।१।।
चिन्ता चिताने तुझको तो बैमानी दान की।
सन्तान की झंझट ने तुझपे, और तान की।।
ना धर्म रहा पास, क्रोध ने गुमान की।
तू किसकी है औलाद,इसकी ना पछान की। |
बेडर रहा दुनिया में, नीति न्याय खो दिया । लगता है तुझे 0 ।।२।।
अब तू कहाँ जाता है ? तेरा लक्ष्य किधर है?
इसका पता नहीं है, तेरा भक्ष्य किधर है?
जैसी चली हवा उधर ही भाग रहा है।
यह कौन कहेगा की, तू मानव ही रहा है?
तुकड्या कहे यह जबसे तेरा शील भग गया । लगता है तुझे 0 ।।३ ।।