जलनेवाली इस दुनिया में, क्यों बैठा है पागल! तू
तर्ज : हरिका नाम सुमर नर प्यारे... )
जलनेवाली इस दुनिया में, क्यों बैठा है पागल! तू ?
ऊठ खडा हो जागृत होकर, कदम बढाले आगल तू ॥टेक ॥
धर्म यहाँका धर्म नहीं है, है स्वारथ बाजी सारी ।
इन्सानीयत खोकर अपनी, किसे मिली है बलिहारी ?
सेवा धर्म उठाले कर में, लेकर आतम का बल तू । उठ0 ।।१।।
हिन्दू हो, इस्लाम रहे, या बुध्द, ईसाई हो कोई ।
ख़ुदा जानता ईमान सबका, झगडा क्यों आपस माँही ?
प्रेम यही कानून खुदा का,इसी भक्ती को ले चल तू ।। उठ0 ।।२।।
ईश्वर एक शान्तिका सागर, बिना उसीके सब होली ।
उसके बलपर कार्य उठा ले, होगी दुनिया अलबेली ।
कहता तुकड्या नव जीवन की, ध्वजा खडी कर निर्मल तू ॥ उठ 0 ।।३।।