राष्ट्र धनको बचानाही सत् धर्म हैं । उसमें झगडे मचाना बडी शर्म हैं ! ।
(तर्ज .. सारी दुनियाँ का तूही....)
राष्ट्र धनको बचानाही सत् धर्म हैं ।
उसमें झगडे मचाना बडी शर्म हैं ! ।।टेक।।
किसने बोला कि ये माल सरकारी है।
ये तो जनताका धन है, वह रखवारी है।।
ये सिखानाही सबसे बडा वर्म हैं ।। राष्ट्र 0।।१॥
छोटी -छोटी -सी बातोंमें जानें गयीं ।
ये नहीं बुद्धिमानी है, जिससे भयी।।
इसमें नेताई नहीं है,बुरा कर्म हैं।। राष्ट्र 0 ।।२ ।।
जिसको करना है कुछभी खुदी बोल दे।
देशका हीत जिसमें, तभी तौल दे।।
अपने स्वारथको गाना,बडा भर्म है।।राषट्र0।।३ ।।
आजके बालकों को नहीं ग्यान हैं।
किसके कहनेसे करते वे तूफान हैं ।।
कुछ समझबूझ रखना,यही मर्म है ।।राषट्र0 ।।४।।
भाई ! तुमतो करो; देश-धन क्यों जले|
कुछतो समझो, ये धन्धे नहीं है भले । |
कहता तुकड्या हटाओ,यही जर्म है।राष्ट्र0 ।।५ ।।