सीधा तो व्यवहार न समझे, कहाँ ब्रम्हकी बात करे।
(तर्ज : वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्....)
सीधा तो व्यवहार न समझे, कहाँ ब्रम्हकी बात करे।
पण्डित बनकर ठगने जाता,नेकीसे नहीं पेट भरे।।टेक
सुबो उठना, स्नान बनाना, मन्दिर में नहीं ध्यान धरे।
गप्पे मारे चबुतरेपर, वेदशास्र खीसे में धरे ।।१॥
लड़का तो जाता है सिनेमा, छोरा-छोरी हाथ धरे।
जरा न उसको कहता है कि मत जावो संतान मेरे ।।२॥
दरवाजे पर खडा अतिथि, गाली देकर दूर करे।
घरमें भरता खुशीसे पैसा, चाहे आया घूँस करे ।।३॥
अदब किसीका, दान जरासा धेला भी नहीं करता है।
चुनाव का जब समय पड़े तब आगे-आगे मरता है ।।४।।
सब बेपार करे बट्टेका, सत् संगत का प्रेम बडा।
वाहरे बाबा ! तू ही पढा है,दुनिया ठगवाने को खडा ॥५॥
मत कर ऐसा छोड सभी ये, अब तो आँखे खोल जरा ।
तन-मनसे कर प्रभु -भक्ति तो बेडा होगा पार तेरा ॥६॥
मत जा तीरथ, मत जा कीर्तन,मगर नेक व्यापार करे ।
तुकड्यादास कहे, तबही तो,ब्रह्म तेरे घर पानी भरे।।७।।