जय -- मंगल गणराज हमारे ! सिध्द विनायक जनहितकारे
(तर्ज :- जयमंगल गुरुदेव हमारे...)
जय -- मंगल गणराज हमारे !
सिध्द विनायक जनहितकारे ।।टेक।।
लंबोदर गजवदन तुम्हारा।
गणनायक जन -गण -मन प्यारा ।।
रिद्धि-सिद्धि के तुम हो दाता -
जो सुमरे संकट दे टारे ! ।।१।।
सुन्दर सिंहासन मनमाँही।
आच्छादित निज पुष्प सुहायी।।
नन्दादीप धूप. मोदक है,
ध्यान धरे मन, जन-मन सारे ।।२॥
तुम्हरा अब सन्देश यही है।
सबको ही बरदान यही है।
वीर बनें, न डरे शत्रू को,
घर-घर यह ऊँचे हो नारे ।।३।।
भारतपर हमला कोइ लावे।
तब हम पीछे रहने नहिं पावे।।
तुकड्यादास, कहे मंगलमय -
हमपर हों, आशीष तुम्हारे ।।४।।