तनमें खोज करो कोई, दिवाना हो मत रे भाई


(तर्ज : जमका अजब तडाका बे...)

तनमें खोज करो कोई, दिवाना हो मत रे भई ।।टेक।।
बालापन में खेल किया जब तारूणपन आई ।
हो अंधा फिर उन विषयन में, धीरज नही ।।१।।
बूढेपन में फूगे के सम, बखती फुट जाई ।
आया वैसा चला उसीमें, भ्रमसे बुध खोई ।।२।।
समझे जग यह झूठ बना है, तोभी पडा मायी ।
अन्धा होकर चला मुसाफिर, क्या मिलता साई ? ।।३।।
कहता तुकड्या फंद करम का, करके भूल पाई ।
कर्मन से सब जग है बाँधा, सद्गुरु चित लाई ।।४।।