जय दुर्गे ! महारानी भवानी ! ! तुम्हरि पुजा मोरे मन मानी !

(तर्ज : भाग्य कुणाला लाभे ऐसे...)

जय दुर्गे ! महारानी भवानी ! !
तुम्हरि पुजा मोरे मन मानी !        ।। टेक ।।
अति सुन्दर सिंहासन तेरो ।
मंगल पुष्प - लतासे बहरो ।।
नव   दीपोंकी निरांजनी है ।
धूप सुगंध जले असमानी ! ।। जय दुर्गे! 0   ।।१।।
दैत्य दलन को त्रिशुल उठाये।
हात खड़्ग तरवार. धराये ॥
खप्पर कर में, अग्नि दहकता -
सिरमें मरवट चमक निशानी !।। जय दुर्गे! 0।।२।।
सिंह सवारी अति भयानक।
निर्भव सत्य चरित्र प्रदर्शक।।
सद्भाविक को पाये भक्तिसे।
स्वर्ग सुख देती निर्वाणी ! ॥ जय दुर्गे ! 0     ।।३।।
सब  देवनपर दृष्टि तुम्हारी।
श्शूर -बिरों को बरदू तुम्हारी |
शिव महाराणा साक्ष इसे हैं-।
तुकड्यादास स्वरूप पछानी !।। जय दुर्ग! 0।।४।।